रूस यूक्रेन युद्ध में चुनौतियों के गर्भ से चिकित्सक का हुआ जन्म-अविनाश देव palamu news today rbc
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अविनाश देव वा अन्य |
गढ़वा के रौशन सोनी की प्रेरणादायक कहानी, जब बमों के बीच भी नहीं छोड़ा सपना
मेदिनीनगर – "सपनों की राह आसान नहीं होती, लेकिन जो मेहनत और हौसले से कदम बढ़ाते हैं, वही मुकाम हासिल करते हैं।" यह साबित किया है गढ़वा निवासी डॉ. रौशन सोनी ने, जिन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए अपना एमबीबीएस पूरा किया।
संत मरियम विद्यालय से यूक्रेन तक का सफर
डॉ. रौशन सोनी की प्रारंभिक शिक्षा संत मरियम विद्यालय, मेदिनीनगर में हुई। 2014 में यहां से पासआउट होने के बाद उन्होंने बोकारो से इंटर साइंस किया और फिर कोटा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू की। कड़ी मेहनत रंग लाई, और उन्हें यूक्रेन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला।
विदेश में पढ़ाई करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने हिम्मत और लगन से अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाए। शुरुआती वर्षों में उन्होंने अच्छे अकादमिक परिणाम भी हासिल किए।
युद्ध की गूंज और भारत वापसी
सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक दुनिया को हिला देने वाली खबर आई – रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया।
कुछ ही दिनों में यूक्रेन के विभिन्न हिस्सों में बम धमाके और मिसाइल हमले होने लगे। चारों ओर दहशत फैल गई, और कई भारतीय छात्र यूक्रेन छोड़ने के लिए मजबूर हो गए।
डॉ. रौशन भी इस संकट से अछूते नहीं रहे। उन्होंने जल्दबाजी में भारत लौटने का फैसला किया, लेकिन इस फैसले ने उनके सपनों को अधूरा छोड़ दिया। गढ़वा लौटने के बाद वे असमंजस में थे – आगे क्या किया जाए?
जोखिम भरा फैसला और दोबारा वापसी
रौशन ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे। युद्ध का माहौल अब भी बना हुआ था, लेकिन सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने जान जोखिम में डालकर दोबारा यूक्रेन लौटने का साहसिक निर्णय लिया।
बम धमाकों और गोलियों की आवाज़ के बीच उन्होंने कॉलेज में अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की।
इस कठिन दौर में संत मरियम विद्यालय में मिले संस्कार, अनुशासन और प्रेरणा उनके संबल बने। वे कहते हैं –
"जो बातें स्कूल में सीखीं, वे आज जीवन का मंत्र बन गईं। उस वक्त छोटी लगने वाली गुरुजनों की सीख ने ही मुश्किल हालात में हिम्मत दी।"
संघर्ष और सफलता की कहानी
डॉ. रौशन ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और भारत लौटकर इंटर्नशिप परीक्षा भी पास कर ली। आज वे एक योग्य डॉक्टर के रूप में समाज की सेवा के लिए तैयार हैं।
वे कहते हैं –
"सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। यह केवल मेहनत, संघर्ष और संकल्प से ही मिलती है। मैंने हार नहीं मानी, इसलिए आज अपने सपने को साकार कर पाया।"
संत मरियम विद्यालय की भूमिका
डॉ. रौशन अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, गुरुजनों और संत मरियम विद्यालय को देते हैं। विद्यालय के शिक्षकों ने हमेशा छात्रों को संघर्ष और आत्मनिर्भरता की सीख दी है।
विद्यालय प्रशासन का कहना है –
"हमारे छात्र हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें, यही हमारी प्राथमिकता है। डॉ. रौशन जैसे विद्यार्थी हमारी प्रेरणा हैं, और उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनेगी।"
निष्कर्ष
डॉ. रौशन सोनी की यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा हमें हमारे लक्ष्य तक पहुँचने से नहीं रोक सकती। रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपने को पूरा किया।
उनका यह सफर हर छात्र और युवा को यह संदेश देता है कि सच्ची सफलता मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास से ही मिलती है।
(विशेष रिपोर्ट: अविनाश देव)
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