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हुसैनाबाद-हरिहरगंज विधानसभा चुनाव 2024: कौन किस पर भारी, क्या कहते हैं समीकरण? Hussainabad vidhan sabha election

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हुसैनाबाद-हरिहरगंज विधानसभा चुनाव 2024 में मुकाबला दिलचस्प और रोमांचक हो चुका है। इस बार कुल 18 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन असली लड़ाई 5 प्रमुख उम्मीदवारों के बीच है। यह चुनाव न केवल जातीय समीकरण, बल्कि दलीय रणनीतियों, बागी उम्मीदवारों और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी आधारित है। इस लेख में हम आपको पूरे चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण देंगे और बताएंगे कि कौन कितना मजबूत है, कौन किसकी राह में कांटे बिछा रहा है, और इस बार जीत का सेहरा किसके सिर बंध सकता है।

 


हुसैनाबाद-हरिहरगंज: वोटरों का गणित


सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि इस क्षेत्र में वोटर का जातीय समीकरण क्या है। कुल 3,19,000 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें से इस बार करीब 1,95,000 ने वोट डाले हैं।  लग भग 60% के आस पास यहां इस विधान सभा में 31 जातीय समुदाय (सरनेम) हैं, लेकिन मुख्य जातियां और उनके वोट कुछ इस प्रकार हैं:


राम (60,000): सबसे बड़ी जाति, जो चुनाव के नतीजों में निर्णायक साबित हो सकती है।

मुस्लिम (45,000-47,000): ये दूसरे नंबर पर आते हैं।

सिंह (37,000): तीसरे सबसे बड़ी जाति, जिनका झुकाव उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि पर निर्भर है।

यादव (25,000): आरजेडी के मजबूत वोट बैंक।

अन्य जातियां: इनमें कुशवाहा, महतो, दलित और पिछड़ा वर्ग शामिल हैं, जिनके वोट इस बार अलग-अलग हिस्सों में बंटते नजर आ रहे हैं।

जातीय समीकरण:   

राम वोट भाजपा, बसपा, गठबंधन ,और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच बंट रहे हैं। यादव और मुस्लिम वोटर्स का झुकाव के साथ साथ अन्य वर्गों का वोट आरजेडी की ओर अधिक बढ़ता दिखाई है। दलित और महतो वोट बसपा की ताकत बढ़ा सकते हैं।


*चुनाव में प्रमुख उम्मीदवार और उनकी स्थिति*

अब बात करते हैं इस चुनाव के मुख्य दावेदारों की, जिनकी चर्चा सबसे ज्यादा है:

 

1. भाजपा: कमलेश कुमार सिंह

भाजपा ने इस बार कमलेश सिंह को टिकट दिया है। कमलेश सिंह का चुनाव अभियान योगी आदित्यनाथ और हेमंत बिस्वा शर्मा के दमदार प्रचार पर आधारित है। भाजपा की कोशिश राम वोट और हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जरिए बढ़त हासिल करने की  है। 

मजबूती: पार्टी का मजबूत संगठन और राम वोटरों का समर्थन।


चुनौतियां: मुस्लिम वोटरों का भाजपा से दूरी बनाना और निर्दलीय कर्नल संजय सिंह और विनोद सिंह का वोट काटना बीजेपी के लिए घातक साबित होता दिखाई दे रहा ।

संभावित वोट: 40,000 _45, 000

2. आरजेडी: संजय यादव

आरजेडी ने संजय यादव को मैदान में उतारा है। यादव समुदाय और मुस्लिम वोटर के साथ अन्य समुदायों का झुकाव मुख्य आधार हैं। 2019 में आरजेडी ने 31,000 वोट हासिल किए थे। इस बार प्रचार अभियान को मजबूती से चलाया गया है। और राज्य सरकार की और राहुल गांधी की विचार धारा से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़त दिलाने में सहायक होती नजर आ रही।


मजबूती: यादव-मुस्लिम- अन्य समुदायों का गठजोड़।

 

चुनौतियां: अन्य कमलेश यादव नेताओं का मैदान में होना और बसपा की ओर मुस्लिम वोटरों का झुकाव, निर्दलीय विनोद सिंह की तरफ भी वोट जाता दिखाई दे रहा।

संभावित वोट: 56,000-63,000।

3. बसपा: कुशवाहा शिवपूजन मेहता

कुशवाहा शिवपूजन मेहता बसपा से खड़े हुए हैं। पिछली बार इन्हें 15,500 वोट मिले थे, लेकिन इस बार दलित और पिछड़ी जातियों पर उनका प्रभाव बढ़ा है।


मजबूती: दलित और पिछड़ा वर्ग के वोटरों का जुड़ाव।

चुनौतियां: राम वोटरों में सेंध और भाजपा-आरजेडी के मजबूत उम्मीदवार।

संभावित वोट: 40,000 44,000

4. निर्दलीय: विनोद सिंह

भाजपा के बागी नेता विनोद सिंह निर्दलीय खड़े हुए हैं। उन्होंने राम और मुस्लिम वोटरों को जोड़ने की कोशिश की है।


मजबूती: भाजपा का बागी सिंपैथी वोट।

चुनौतियां: संगठन की कमी और मुस्लिम वोटों का आरजेडी की ओर झुकाव।

संभावित वोट: 24,000-30,000।

5. निर्दलीय: कर्नल संजय सिंह

कर्नल सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। पांच साल तक उन्होंने क्षेत्र में काम किया है, लेकिन बूथ मैनेजमेंट कमजोर रहा है।


मजबूती: व्यक्तिगत छवि और सिंह समुदाय का समर्थन।

चुनौतियां: भाजपा और अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ना।

संभावित वोट: 10,000-12,000।

6. अन्य उम्मीदवार:

प्रभा देवी (आजाद समाज पार्टी): 5,000 वोट मिलने की संभावना है।

बाकी 12 छोटे उम्मीदवारों को कुल मिलाकर: 17,000 वोट मिल सकते हैं।

चुनाव में जातीय समीकरण और पार्टी की रणनीति

जातीय समीकरण इस बार चुनावी नतीजों का सबसे बड़ा कारक है।


राम वोटर (60,000):

भाजपा, बसपा और निर्दलीय विनोद सिंह में बंट रहे हैं।

मुस्लिम वोटर (45,000):

आरजेडी का मुख्य वोट बैंक। कुछ वोट बसपा, निर्दलीय को भी मिलने की संभावना।

सिंह वोटर (37,000):

भाजपा और निर्दलीय कर्नल संजय सिंह वा विनोद सिंह में बंट सकते हैं।

यादव वोटर (25,000):

आरजेडी के पक्ष में।

संभावित वोटों का अनुमान (मुख्य उम्मीदवार)

उम्मीदवार संभावित वोट

भाजपा (कमलेश सिंह) 40,000- 45,000

आरजेडी (संजय यादव) 56,000-63,000

बसपा (कुशवाहा मेहता) 41,000, 45,000

निर्दलीय (विनोद सिंह) 24,000-27,000

निर्दलीय (कर्नल सिंह) 10,000-12,000

अन्य 22,000

मुख्य फैक्टर जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करेंगे

मुस्लिम वोटर्स का झुकाव:

2019 में शेर अली (बसपा) को 15,000 2024 में बड़े वोट % को + करते हुए मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिलने की संभावना। इस बार उनके मैदान में न होने से अधिकांश वोट आरजेडी को मिल सकते हैं।

राम वोटर्स का विभाजन:

राम वोटरों का झुकाव भाजपा, बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच बंटा है।

बागी उम्मीदवार:

विनोद सिंह और कर्नल सिंह भाजपा और बसपा के वोट काट सकते हैं।

प्रचार और छवि:

योगी आदित्यनाथ, हेमंत बिस्वा शर्मा और क्षेत्रीय मुद्दे भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं, जबकि आरजेडी को मुस्लिम और यादव वोट बैंक का फायदा होगा।

क्या भाजपा इतिहास दोहरा पाएगी?

भाजपा ने 1990 में हुसैनाबाद सीट जीती थी, लेकिन इस बार जातीय विभाजन और बागी नेताओं के कारण चुनौती बड़ी है।1990में मुस्लिम समुदाय के नेता अधिवक्ता औरंगज़ेब खान भी थे जिन्हें 8452 वोट मिले थे जो चौथे स्थान पर थे जनता दल वीरेंद्र कुमार सिंह दूसरे स्थान पर थे । 1990 की स्थिति और 2024 में एक दम अलग है क्यों कि मुस्लिम का 60% वोट राजद की तरफ जाता दिखाई दे रहा।


अंतिम निष्कर्ष: कौन जीतेगा?

जातीय समीकरण और प्रचार अभियानों के साथ साथ राज्य सरकार की योजनाओं के आधार पर आरजेडी सबसे मजबूत स्थिति में है।

संजय यादव (आरजेडी) 63,000 तक वोट पाकर चुनाव जीत सकते हैं।

भाजपा और बसपा के बीच दूसरा स्थान पाने की लड़ाई होगी, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार नतीजों को रोमांचक बनाएंगे।


2024 का यह चुनाव जातीय समीकरण और दलों की रणनीति पर पूरी तरह निर्भर है। अंतिम फैसला जनता के हाथ में है, लेकिन इतना तय है कि नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं!

कर्नल संजय का बढ़ता % बीजेपी बीएसपी के लिए घातक साबित हो सकता है।

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