हुसैनाबाद में एनडीए संकट: कुशवाहा शिवपूजन मेहता की बगावत से टिकट बंटवारे पर मचा घमासान NDA crisis in Hussainabad: Kushwaha Shivpujan Mehta's rebellion creates ruckus over ticket distribution.
हुसैनाबाद जनप्रतिनिधि |
हुसैनाबाद, पलामू: (रिपोर्ट उदय ओझा) झारखंड के हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनावों को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। एक तरफ जहां इंडिया गठबंधन में राजद और झामुमो के बीच फ्रेंडली फाइट के संकेत मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एनडीए गठबंधन भी आंतरिक कलह का शिकार हो गया है। इस बीच हुसैनाबाद सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है, जहां एनडीए के दो प्रमुख घटक दल, भाजपा और आजसू, आपसी मतभेदों में उलझे हुए हैं।
एनडीए गठबंधन में इस तनाव की सबसे बड़ी वजह है पूर्व विधायक और आजसू नेता कुशवाहा शिवपूजन मेहता की नाराजगी। मेहता, जो हुसैनाबाद की राजनीति का एक मजबूत चेहरा माने जाते हैं, ने साफ तौर पर पार्टी नेतृत्व द्वारा दिए गए किसी भी सलाह को नजरअंदाज करते हुए चुनावी मैदान में डटे रहने का ऐलान कर दिया है। चुनावी समीकरणों को देखते हुए यह स्थिति एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बनती नजर आ रही है।
भाजपा में कमलेश सिंह की एंट्री से उथल-पुथल
इस राजनीतिक खींचतान की शुरुआत तब हुई जब एनसीपी विधायक कमलेश सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। उनके भाजपा में शामिल होते ही पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी की लहर दौड़ पड़ी। कमलेश सिंह के भाजपा प्रत्याशी के रूप में सामने आने की संभावना से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं में बेचैनी पैदा हो गई है। उन्हें बाहरी उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है, जिसे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं ने खुले तौर पर अस्वीकार किया है।भाजपा कार्यकर्ताओं की इस नाराजगी का असर तब और स्पष्ट हो गया जब कमलेश सिंह के स्वागत समारोह में पार्टी के अधिकांश मंडल और बूथ अध्यक्षों ने हिस्सा लेने से इंकार कर दिया। भाजपा के कई स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बाहरी चेहरे को टिकट दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से यह संकेत दिया है कि अगर भाजपा किसी पुराने कार्यकर्ता को टिकट नहीं देती और कमलेश सिंह को प्रत्याशी घोषित करती है, तो वे सामूहिक इस्तीफा देने को मजबूर हो जाएंगे।
शिवपूजन मेहता की बगावत और सियासी मोर्चाबंदी
कुशवाहा शिवपूजन मेहता, जो हुसैनाबाद की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं, ने भी कमलेश सिंह की एंट्री पर खुलकर नाराजगी जताई है। मेहता का कहना है कि वह आजसू पार्टी के माध्यम से एनडीए का हिस्सा हैं, और भाजपा और आजसू के बीच सीट शेयरिंग के फार्मूले का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, जिस तरह से कमलेश सिंह को भाजपा में प्रमुखता दी जा रही है, उससे नाराज मेहता ने अपने बगावती तेवर दिखाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी कीमत पर चुनावी मैदान से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। शिवपूजन मेहता का राजनीतिक सफर भी दिलचस्प रहा है। वे बसपा के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं और 1995 में कॉलेज के दिनों में ही मायावती और कांशीराम के नेतृत्व में बसपा से जुड़े थे। 2005 में उन्होंने हुसैनाबाद से बसपा के टिकट पर पहला चुनाव लड़ा, लेकिन 2014 में जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने बसपा छोड़ आजसू का दामन थामा। अब जब कमलेश सिंह की भाजपा में एंट्री हो चुकी है और हुसैनाबाद सीट उनके हिस्से में जाती दिख रही है, तो मेहता या तो बसपा में वापसी करने की योजना बना रहे हैं या फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। DDDD
भाजपा में अंदरूनी बगावत के संकेत
शिवपूजन मेहता की बगावत के अलावा भाजपा के अंदर भी असंतोष के बादल मंडरा रहे हैं। भाजपा से टिकट नहीं मिलने की स्थिति में किसान ब्रिगेड के संरक्षक कर्नल संजय कुमार सिंह भी बगावत का झंडा उठाने को तैयार हैं। संजय कुमार सिंह का कहना है कि इस बार वे आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं और अगर पार्टी उन्हें नजरअंदाज करती है, तो वे बगावत करने से पीछे नहीं हटेंगे। सूत्रों की मानें तो कर्नल संजय सिंह घड़ी लेकर एनसीपी के संभावित प्रत्याशी हो सकते हैं। इसके अलावा भाजपा के एक और मजबूत दावेदार विनोद कुमार सिंह भी संभावित बागी उम्मीदवारों में शामिल हो सकते हैं। फिलहाल श्री सिंह वेट ऐंड वाच की स्थिति में हैं।उन्हें उम्मीद है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की रायशुमारी का सम्मान करेगी।
भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं का कहना है कि वे कमलेश सिंह जैसे बाहरी उम्मीदवार के साथ एडजस्ट नहीं कर सकते। हाल ही में विभिन्न मंडलों के अध्यक्षों और बूथ स्तरीय अध्यक्षों की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि अगर पार्टी ने किसी बाहरी उम्मीदवार को टिकट दिया, तो वे सामूहिक रूप से इस्तीफा देंगे। 18 अक्टूबर को भी हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र के सभी मंडल एवं बूथ अध्यक्षों की बैठक होने वाली है जिसमें अगली रणनीति पर गहन मंथन होना है। इन संकेतों से साफ है कि भाजपा के अंदरूनी हलकों में भी असंतोष चरम पर है और एनडीए के लिए यह चुनावी रण आसान नहीं रहने वाला।
एनडीए के अंदर दोस्ताना संघर्ष की आहट
एनडीए गठबंधन के अंदर चल रही इस खींचतान से यह साफ हो गया है कि अंदरूनी कलह ने गठबंधन की एकता को बड़ा झटका दिया है। कुशवाहा शिवपूजन मेहता की बगावत, भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी और अन्य दावेदारों की संभावित बगावत से एनडीए के लिए हुसैनाबाद की सीट पर संघर्ष कठिन होता नजर आ रहा है। हालांकि, अंतिम मुकाबला एनडीए और इंडिया गठबंधन के अधिकृत प्रत्याशियों के बीच होने की उम्मीद है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए के अंदर चल रही इस सियासी लड़ाई का अंत किस तरफ जाता है। टिकट बंटवारे का ऐलान होते ही स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी, और यह तय होगा कि हुसैनाबाद से कौन से योद्धा चुनावी अखाड़े में उतरेंगे।अब यह देखना बाकी है कि क्या एनडीए गठबंधन अपने अंदरूनी मतभेदों को सुलझाकर चुनावी मैदान में मजबूती से उतरता है, या फिर हुसैनाबाद की यह लड़ाई गठबंधन के अंदर ही एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर देगी।
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