हुसैनाबाद विधानसभा: झामुमो की मजबूत पकड़, इंडिया गठबंधन में फ्रेंडली फाइट की संभावनाHussainabad Assembly: Strong hold of JMM, possibility of friendly fight in India alliance
हेमंत सोरेन वा एजाज हुसैन |
लेखक: उदय ओझा
स्थान: हुसैनाबाद, पलामू, झारखंड
हुसैनाबाद विधानसभा सीट झारखंड की राजनीति में हमेशा से अहम रही है। इस बार का चुनाव इसे और भी खास बना रहा है, क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए नई रणनीतियों को अपनाया है। यही वजह है कि इस बार इंडिया गठबंधन के अंदर फ्रेंडली फाइट की संभावनाएं बढ़ गई हैं। आइए, जानते हैं इस चुनावी मुकाबले की पूरी कहानी।
हेमन्त सोरेन वा टूटू सिंह |
झामुमो की सशक्त रणनीति और संगठनात्मक बदलाव
झामुमो ने इस बार हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को और अधिक मजबूत करने के लिए कई प्रभावशाली कदम उठाए हैं। पार्टी ने हाल ही में एक भव्य मिलन समारोह का आयोजन किया, जिसमें झारखंड ज़िला परिषद उपाध्यक्ष आलोक कुमार सिंह समेत करीब 750 नए सदस्यों को शामिल किया गया। आलोक कुमार सिंह, जो क्षेत्र के एक लोकप्रिय युवा नेता माने जाते हैं, की एंट्री ने पार्टी के आत्मविश्वास को और बढ़ा दिया है।
इसके अलावा, झामुमो ने हुसैनाबाद में “मंईयां सम्मान यात्रा” नामक एक यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ को मजबूत करना था। यात्रा के दौरान, झामुमो ने कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की, जैसे कि मंईयां सम्मान योजना की राशि बढ़ाकर 2500 रुपये करना, बिजली बिल माफी, और पारा शिक्षकों के लिए ईपीएफ योजना लागू करना। ये योजनाएं सीधे तौर पर हुसैनाबाद के ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित करती हैं और उनके वोट झामुमो की ओर आकर्षित कर सकती हैं।
राजद के लिए चुनौती बन रही है झामुमो की बढ़त
झामुमो की यह बढ़त गठबंधन के सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए चिंता का विषय बन गई है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष संजय कुमार सिंह यादव, जो हुसैनाबाद से दो बार विधायक रह चुके हैं और 2019 के चुनावों में दूसरे स्थान पर रहे थे, इस सीट को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं। राजद इस सीट को किसी भी हाल में झामुमो के लिए छोड़ने को तैयार नहीं है, जिससे गठबंधन में आंतरिक टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। ऐसे में इस सीट पर फ्रेंडली फाइट की संभावना काफी बढ़ गई है।
स्थानीय नेतृत्व की ताकत झामुमो के पक्ष में
आलोक कुमार सिंह के झामुमो में शामिल होने के साथ ही, बशिष्ठ सिंह उर्फ बबलू सिंह और विवेकानंद सिंह जैसे स्थानीय नेताओं ने भी “मंईयां सम्मान यात्रा” को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इन नेताओं ने पार्टी के लिए ज़मीन तैयार की है और इस बात की भी प्रबल संभावना है कि झामुमो इन नेताओं में से किसी एक को हुसैनाबाद से चुनावी मैदान में उतारेगा। पार्टी के भीतर इन नेताओं के बीच अच्छा तालमेल है, जिससे चुनावी अभियान और भी प्रभावशाली हो सकता है।
झामुमो की चुनावी चुनौतियां और इतिहास
हालांकि, झामुमो के लिए हुसैनाबाद का चुनावी इतिहास कोई खास उत्साहवर्धक नहीं रहा है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में झामुमो के प्रत्याशी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाए थे। 1995, 2005, और 2014 के चुनावों में झामुमो के प्रत्याशी चुनाव में जमानत भी नहीं बचा पाए थे। यह सीट पार्टी के लिए अब तक अभेद्य किला साबित हुई है।
लेकिन इस बार की स्थिति बदली हुई है। एनसीपी के विधायक कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने से क्षेत्र के एक खास वर्ग में नाराजगी है, जिसका फायदा झामुमो को मिल सकता है। पार्टी ने स्थानीय स्तर पर अपने संगठन को मजबूत किया है और आलोक कुमार सिंह जैसे युवा नेता पार्टी को नई ऊर्जा दे रहे हैं।
इंडिया गठबंधन में फ्रेंडली फाइट की संभावना
हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर झामुमो और राजद दोनों ही दल इस बार के चुनाव में अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगे हैं। गठबंधन के तहत सीट बंटवारे को लेकर तनाव की स्थिति बन रही है, जिससे यह सीट दोनों दलों के लिए एक ‘फ्रेंडली फाइट’ का केंद्र बन सकती है। इस मुकाबले में कौन जीतता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन एक बात साफ है कि यह चुनाव झामुमो और राजद दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने जा रहा है।
क्या इस बार झामुमो तोड़ेगा हुसैनाबाद का किला?
झामुमो के लिए हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन इस बार पार्टी ने अपनी रणनीतियों को और भी प्रभावी बनाया है। स्थानीय नेताओं का मजबूत समर्थन, संगठनात्मक बदलाव, और जनता के बीच लोकलुभावन घोषणाएं, इन सबके चलते झामुमो इस बार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहा है। अब देखना यह होगा कि क्या झामुमो इस बार हुसैनाबाद का किला तोड़ पाएगा या फिर राजद के साथ होने वाली फ्रेंडली फाइट में उलटफेर देखने को मिलेगा।
निष्कर्ष: हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर झामुमो और राजद के बीच संभावित फ्रेंडली फाइट ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है। झामुमो ने इस बार अपनी रणनीतियों में बदलाव कर क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत किया है, जबकि राजद भी सीट को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं है। यह मुकाबला गठबंधन की राजनीति के साथ-साथ झारखंड की राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
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